जहाँ एक ओर सरकार नई औद्योगिक इकाइयों को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न योजनाएँ, सुविधाएँ और सब्सिडी प्रदान कर रही है, वहीं दूसरी ओर ज़मीनी हकीकत इसके ठीक विपरीत देखने को मिल रही है। उद्योगों को सीआईएस (अनुपालन एवं निरीक्षण दल) द्वारा मनमानी जांच के नाम पर प्रताड़ित किया जा रहा है, जिससे उद्योगों के सामने गंभीर संकट उत्पन्न हो गया है। यें बातें प्रेसवार्ता के दौरान आर के अग्रवाल, एडवाइजर, सुशील शर्मा, चेयरमैन, यादवेंद्र सिंह सचान, वाईस-चेयरमैन, इंडस्ट्री कमिटी तथा अजीत कुमार ठाकुर ने मर्चेंट्स चैम्बर ऑफ़ उत्तर प्रदेश सिविल लाइन में कहीं।
उन्होंने कहा कि सीआईएस की टीमें 5-6 अधिकारियों के समूह में औद्योगिक इकाइयों पर अचानक पहुंचती हैं और 35 पृष्ठों की अनुपालन जांच सूची (चेकलिस्ट) सौंप दी जाती है। यह सूची इतनी विस्तृत और जटिल होती है कि उद्योगों के लिए इसे पूरा करना बेहद कठिन हो जाता है। निरीक्षण दल सहयोग करने के बजाय उद्योगपतियों पर अवैध रूप से पैसों की मांग करता है। यदि “समझौता” नहीं हो पाता, तो कई मामलों में संबंधित अधिनियमों के अंतर्गत उद्योगों पर केस दर्ज कर दिए जाते हैं और एक महीने के भीतर अभियोजन की कार्यवाही शुरू हो जाती है।
पदाधिकारियों ने बताया किय ह रवैया उस इंस्पेक्टर राज की याद दिलाता है, जिसे समाप्त करने का संकल्प देश ने वर्षों पहले लिया था। यह स्थिति न केवल नए उद्योगों की स्थापना में बाधा बन रही है, बल्कि पहले से चल रहे उद्योगों को भी बंद होने की कगार पर ला रही है।
आर के अग्रवाल ने बताया कि इस गंभीर विषय को लेकर सभी उद्योग संगठनों से संपर्क किया गया है और निकट भविष्य में संगठन प्रमुखों एवं श्रम आयुक्त के साथ एक बैठक आयोजित की जा रही है। साथ ही, इस मामले को माननीय मुख्यमंत्री जी के समक्ष रखने के लिए समय भी माँगा जाएगा।
उद्योग संगठनों की ओर से सरकार से अपील की जाती है कि इस प्रकार की सख्ती और दुरुपयोग पर तुरंत रोक लगाई जाए, ताकि “ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस” का वादा केवल कागज़ों तक सीमित न रह जाए और उद्योग जगत को राहत मिल सके। यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो औद्योगिक विकास का सपना अधूरा ही रह जाएगा।