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आदित्य मिश्रा का चयन 2025 मे 18 अकादमी (दक्षिण कोरिया) के लिए : मानवाधिकार और लोकतंत्र की एक उभरती हुई आवाज

 

 

वाराणसी के युवा विधि छात्र आदित्य मिश्रा का चयन दक्षिण कोरिया के ग्वांग्जू स्थित मे 18 फाउंडेशन द्वारा आयोजित 2025 मे 18 अकादमी के लिए हुआ है। यह चयन केवल व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक संघर्षों की निरंतरता और पीढ़ियों व सीमाओं से परे एकजुटता का प्रतीक है।

ग्वांग्जू विद्रोह की प्रेरणा

मई 1980 का ग्वांग्जू विद्रोह दक्षिण कोरिया के लोकतंत्र की रीढ़ है। इसने यह दिखाया कि आम नागरिकों का सामूहिक साहस इतिहास की धारा को न्याय और स्वतंत्रता की ओर मोड़ सकता है। मे 18 अकादमी उसी संघर्ष की जीवंत विरासत है, जो हर साल दुनिया के विभिन्न देशों से चुनिंदा युवाओं, कार्यकर्ताओं और विधि विशेषज्ञों को आमंत्रित करती है।

 

इस वर्ष का आयोजन 25–29 अगस्त 2025 तक हो रहा है, जिसमें इंडोनेशिया, थाईलैंड, नेपाल, पाकिस्तान, अमेरिका, चीन सहित कुल 16 प्रतिभागी शामिल हैं। भारत से प्रतिनिधित्व करते हुए आदित्य मिश्रा की भागीदारी दक्षिण एशिया की आवाज़ को वैश्विक लोकतांत्रिक संवाद में सशक्त करेगी।

 

आदित्य मिश्रा: कानून और न्याय के साधक

आदित्य मिश्रा वर्तमान में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी से बी.ए. एलएल.बी. (ऑनर्स) कर रहे हैं। उन्होंने अपने मानवाधिकार कार्यों की यात्रा पीपुल्स विजिलेंस कमेटी ऑन ह्यूमन राइट्स (PVCHR), जन मित्र न्यास (JMN) और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA), प्रयागराज के साथ काम करते हुए शुरू की।

 

मेरे मार्गदर्शन में उन्होंने—

 

हिरासत में हिंसा व यातना पर शोध कार्य,

 

आपराधिक कानून सुधारों का तुलनात्मक अध्ययन (IPC/BNS व CrPC/BNSS),

 

हिंसा के पीड़ितों की गवाही दर्ज करना व न्याय की पहल,

 

स्वास्थ्य अधिकार, किचन गार्डन और दलित–आदिवासी समुदायों में विधिक सशक्तिकरण — जैसे क्षेत्रों में योगदान दिया है।

 

बिना साक्षात्कार मिला सम्मान

विशेष बात यह है कि मे 18 अकादमी ने आदित्य का साक्षात्कार चरण माफ कर दिया और उनके आवेदन पत्रों को ही चयन के लिए पर्याप्त माना। यह उनकी प्रतिबद्धता, गहनता और मानवाधिकार चेतना का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त होना है।

 

भारत से ग्वांग्जू तक पुल का निर्माण

आदित्य केवल कानून के विद्यार्थी के रूप में नहीं, बल्कि भारत की लोकतांत्रिक भावना के प्रतिनिधि के रूप में ग्वांग्जू पहुँचे हैं। वहाँ वे स्मृति संरक्षण, संक्रमणकालीन न्याय और वैश्विक लोकतांत्रिक आंदोलनों पर विमर्श करेंगे। उनकी दक्षिण एशियाई दृष्टि इस संवाद को और समृद्ध करेगी।

 

नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा

जैसे ग्वांग्जू विद्रोह में युवाओं ने स्वतंत्रता का अलख जगाया, वैसे ही आदित्य और उनके साथी आज दक्षिण एशिया में बदलाव की आवाज़ बने हैं। उनका चयन भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में न्याय और लोकतंत्र के लिए संघर्ष करने वालों के लिए गर्व का क्षण है।

 

निष्कर्ष

आदित्य मिश्रा का चयन यह सिद्ध करता है कि लोकतंत्र उपहार में नहीं मिलता, बल्कि त्याग, सतर्कता और अंतरराष्ट्रीय एकजुटता से जीवित और मजबूत होता है। ग्वांग्जू की प्रेरणा एशिया के लोकतांत्रिक संघर्षों का मार्गदर्शन करती है और हमें यह विश्वास दिलाती है कि न्याय, गरिमा और लोकतंत्र एक दिन सबकी साझा वास्तविकता बनेंगे।

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