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केवट संवाद, श्रवण कुमार, दशरथ स्वर्ग, कैकेई भरत संवाद लीला ने मंत्र मुग्ध किया

 भारत की सबसे प्राचीनतम रामलीला समिति, श्रीराम लीला समिति ऐशबाग लखनऊ के तत्वावधान में रामलीला मैदान के तुलसी रंगमंच पर चल रही रामलीला के आज चौथे दिन निषादराज राम मिलन, केवट संवाद, सुमंत्र का वापस जाना, दशरथ विलाप, श्रवण कुमार कथा, दशरथ स्वर्ग, कैकेई भरत संवाद, मंथरा का महल से निष्कासन और कैकेई परित्याग लीला हुई।

आज की रामलीला के पूर्व कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य अतिथि एम.एल.सी पवन सिंह चौहान ने दीप प्रज्जवलित कर किया। इस अवसर पर श्री राम लीला समिति के अध्यक्ष हरीशचन्द्र अग्रवाल और सचिव पं आदित्य द्विवेदी ने पवन सिंह चौहान को पुष्प गुच्छ, अंग वस्त्र और स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। रामलीला मंचन के पूर्व शिवांगी बाजपेयी के निर्देशन में जलोटा एकेडमी के कलाकारों ने भक्ति गीतों संग नृत्य की मनोरम छटा बिखेरी। इसी क्रम में मंदाकिनी शास्त्री के नृत्य निर्देशन में हार्ट एण्ड सोल डांस अकादमी के कलाकारों ने भक्ति भावना से परिपूर्ण नृत्य की प्रस्तुतियां दी।

आज रामलीला की शुरूवात निषादराज राम मिलन लीला से हुई, इस प्रसंग में राम, सीता और लक्ष्मण जब वन गमन के लिए प्रस्थान करते हैं तो रास्ते में अयोध्या की सारी प्रजा उनके साथ चलती है, वहीं निषादराज से राम जी कहते हैं कि आप अब वापस चले जाइये और राज्य की सीमा की सीमा की रक्षा कीजिए। इसके बाद केवट संवाद लीला हुई, इस प्रसंग में जब भगवान राम नदी पार करने के लिए केवट से आग्रह करते हैं कि वह नदी पार करा दे तब केवट राम जी से कहते हैं कि पहले वह आपके पांव पखारेंगे, फिर नौका से नदी पार करायेंगे। इसके बाद केवट अपनी पत्नी से कहते हैं कि वह भगवान के पांव पखारने के लिए परात लेकर आए, इसके बाद केवट भगवान राम के पांव पखरते हैं और पांव पखारने के बाद परात के उस जल को चरणामृत के रूप में स्वयं, पत्नी और बाकी घर वालों ग्रहण कराते हैं। इसके बाद भगवान राम, सीता और लक्ष्मण को केवट नदी पार कराते हैं।

राम के वन जाने के बाद राजा दशरथ राम के लिए काफी व्याकुल रहते हैं, राम के बिना वह अपने आपको अकेला महसूस करते हैं इसलिए वह अपने मंत्री से कहते हैं कि वह राम को समझा बुझाकर वापस ले आएं, सुमंत्र राम के पास जाकर राजा दशरथ की सारी बात बताते हैं, इस पर राम, सुमंत्र से कहते हैं कि वह अपने पिता के वचनों के कारण यहां आये हैं, इसलिए मैं वनवास के बाद ही अयोध्या वापस आऊंगा। इस बात को सुनकर सुमंत्र अयोध्या वापस जाकर सारा वृतान्त राजा दशरथ से बताते हैं। इस बात को लेकर वह काफी परेशान रहने लगते हैं। यह प्रसंग यहीं पर समाप्त हो जाता है।

इसके बाद श्रवण कुमार लीला हुई, इस प्रसंग में एक दिन दशरथ आखेट खेलने के लिए वन जाते हैं, काफी दूर जाने पर उनको कुछ आवाज सुनाई देती है, जिसको सुनकर वह धनुष बाण लेकर उस आवाज के सहारे जाते है जहां उनको पोखर में पानी पीता हुआ एक मृग दिखाई देता है, इसको देखकर वह उस पर बाण चला देते हैं, जैसे ही वह बाण उनसे छूटता है वैसे ही जोर से आवाज आती है, इसको सुनकर वह उसके पास जाते हैं जहां पर वह एक युवक को मरणासन्न अवस्था में देखते हैं उससे सारी बात जानने के बाद वह श्रवण कुमार के माता-पिता से मिलकर पूरी बात बताते हैं, इसके बाद उनके माता-पिता दशरथ से कहते हैं कि जैसे मुझे अपने पुत्र के वियोग में प्राण त्यागने पड़ रहे है, वैसे ही पुत्र वियोग में आपको भी प्राण त्यागने होंगे।

इस लीला के पश्चात दशरथ स्वर्ग गमन लीला हुई, इस प्रसंग में राजा दशरथ राम के वियोग में काफी व्याकुल रहते हैं, जिसके कारण वह एक दिन स्वर्ग सिधार जाते हैं। इसी क्रम में कैकेई भरत संवाद, मंथरा का महल से निष्कासन और कैकेई परित्याग लीला हुई, इन प्रसंगों में भरत अपने पिता दशरथ की मृत्यु से आहत हो अपनी मां कैकेई से कहते हैं कि आपके ही कारण पिता जी का यह हाल हुआ है, इस कारण आप मंथरा को महल से बाहर निकाल दीजिए, पिता की असली मृत्यु का कारण मंथरा ही है, जिसके बाद मंथरा महल से बाहर कर दिया जाता है, यहीं पर रामलीला का समापन होता है।

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