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जो होगा प्रेम मे डूबा वो दिल से गुनगुनाएगा…

 

– पार्थ नवीन को पं. दीन दयाल उपाध्याय साहित्यिक सेवा सम्मान व कल्पना शुक्ला को स्व: डॉ रमेश रस्तोगी सम्मान से सम्मानित।


– शिव रात्रि पर हुआ अखिल भारतीय कवि सम्मेलन
लखनऊ, 26 फरवरी 2025। ” शिव हमारी सनातन संस्कृति एवं आस्था के आराध्य भगवान हैं, विषम परिस्थिति में भी सबको एक रहने की प्रेरणा देता है उनका चरिग कौशल ” यह उद्‌गार शिव पार्क, शिव नगर खदरा स्थित शिव मन्दिर परिसर में पं.दीन द‌याल उपाध्याय साहित्यिक सेवा संस्थान के तत्वावधान में आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह के अवसर पर मुख्य अतिथि राज्यसभा सांसद एवं पूर्व उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने व्यक्त किये।
शिवरात्रि के पावन अवसर पर आयोजित इस भव्य कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि प्रकाश पाल ने शिव महिमा का बखान किया, तो वहीं युवा भाजपा नेता नीरज सिंह ने सबको इस पर्व की बधाई दी। कार्यक्रम के मुख्य संरक्षक विधायक उत्तर विधान सभा नीरज बोरा ने साहित्य के सकारात्मक पक्ष पर प्रकाश डाला।
इस अवसर पर राज्यसभा सांसद एवं पूर्व उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा, प्रकाश पाल, नीरज सिंह और पं. आदित्य द्विवेदी ने वर्ष 2025 का पं. दीनदयाल उपाध्याय साहित्यिक सम्मान राजस्थान के कवि पार्थ नवीन और स्व: डॉ रमेश रस्तोगी सम्मान दिल्ली की कवयित्री कल्पना शुक्ला को प्रदान किया।
डॉ सर्वेश अस्थाना के मंच संचालन में आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में इटावा से पधारे राष्ट्रवादी चिंतक कवि डॉ. कमलेश शर्मा ने कहा -” जतन से संवारी कलम बोलती है, कि बनकर दुधारी कलम बोलती है, जहां लोग अन्याय पर मैं रहते
वहां पर हमारी कलम बोलती है “। क्रम को आगे बढ़ाते हुए जयपुर के अशोक चारण ने सुनाया ” स्वर्ग छोड़ती परियों को फिर वैसी जगह नहीं मिलती,
जो घर को छोड़ें उनको घर जैसी जगह नहीं मिलती,
मर्यादा की रेखा से जब पार चरण हो जाता है,
पंचवटी से तब सीता का मान हरण हो जाता है,
नीड़ छोड़ कर पंछी के बच्चे यूँही अकुलाते हैं
पेड़ छोड़ने वाले फल चाकू से काटे जाते हैं “।
राजस्थान की धरती से आए कवि पार्थ नवीन ने सुनाया ” उड़ते रहो हवाओं में कपूर की तरह, बजते रहो फिजाओं में संतूर की तरह, मुरझाये हुए फूल पे आएंगी तितलियां एन्जॉय कीजिये शशि थरूर की तरह “। बाराबंकी के हास्य कवि प्रमोद पंकज ने कहा ” संगल में फिर से पैदा हनुमान हो गये, राम के विरोधी अंतरध्यान हो गये “।
श्रोताओं की जोरदार तालियों के बीच डॉ. विष्णु सक्सेना (हाथरस) ने सुनाया ” जो होगा प्रेम मे डूबा वो दिल से गुनगुनाएगा, नज़र का तीर ऐसा है जिगर के पार जाएगा, सुने नफ़रत के सब साये मोहब्बत का मैं सूरज हूं, करो कितनी भी कोशिश पर उजाला रुक ना पाएगा “। दिल्ली से आयी कवयित्री कल्पना शुक्ला ने कहा ” कोई जब दिल दुखता है तो बेटी याद आती है,
बहुत ज़्यादा रुलाता है तो बेटी याद आती है, कभी बाहर से आओ तो सभी झोला खंगालेंगे, कोई पानी पिलाता है तो बेटी याद आती है “।
उन्नाव के विनय दीक्षित की पंक्तियां थीं ” भोलेनाथ ! तुम आज भी भोले के भोले, भक्तों को खिलाते मालपुआ, खुद भाँग के गोले, यहां भोले का अर्थ बुध्धू से लगाया जाने लगा है, और अर्थ के लिए अर्थी तक निकलवाया जाने लगा है। उनकी अगली पंक्तियां थीं ”
तुम आज भी वही भस्म रमाते, यहाँ लोग मख्खन मलते-मलवाते,तुम आज भी हिमालय पर रहते, धरा पर कोई फ्लैट क्यों नहीं बुक करते “। सर्वेश अस्थाना की बानगी थी ” राम तुम्हारे पुत्र धर्म के सामने हम खुद को लेकर शर्मिंदा हैं, पिता को वृद्धाश्रम भेज कर आज भी बेशर्मी से जिंदा हैं “।

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