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सरहदें मुल्क बांट सकती हैं, इंसानियत नहीं का संदेश दे गया नाटक मसीहा

सामाजिक, शैक्षिक एवं सांस्कृतिक संस्था स्वर्ण संगीत एवं नाट्य समिति के तत्वावधान में वाल्मीकि रंगशाला गोमती नगर लखनऊ में भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय संस्कृति विभाग के सहयोग से चल रहे त्रि दिवसीय नाट्य समारोह की अंतिम समापन संध्या में आकांक्षा थियेटर आर्टस की प्रस्तुति के अन्तर्गत सागर सरहदी द्वारा लिखित एवं अनुपम बिसारिया द्वारा निर्देशित नाटक ‘ मसीहा का मंचन किया गया। नाट्य मंचन से पूर्व मुख्य अतिथि प्रोफेसर देवेन्द्र कुमार सिंह, प्राचार्य, नेशनल पीजी कालेज लखनऊ ने दीप प्रज्जवलित कर कलाकारों को आर्शीवाद प्रदान किया।

उत्कृष्ट कथानक से सजे नाटक मसीहा ने 1947 के भारत-पाकिस्तान के बंटवारे की त्रासदी को दर्शाते हुए जहां एक ओर शरणार्थियों की सामाजिक एवं मानसिक मनोदशा को उजागर किया वहीं दूसरी ओर बताया की सरहदें मुल्क बांट सकती हैं, इंसानियत नहीं।

नाट्य सारानुसर भारत-पाकिस्तान सरहद पर भारत की ओर से एक शरणार्थी शिविर लगाया गया, जिसमें शरणार्थी अपने प्रियजनों का, जो बिछड गये हैं उनका इंतजार करते है। सरहद के दोनों तरफ दोनों मुल्को के सिपाही तैनात रहते है जो बंटवारे से पहले एक ही गांव में बचपन से रहते है। मास्टर संतराम पाकिस्तान से आया एक शरणार्थी अपनी बहन का रोजाना इंतजार करता है। उसकी बहन को उसके ही शार्गिद उठा ले गये है जिन्हे कभी मास्टर संतराम ने पढ़ाया था। वतन पर कुर्बान होने का हौसला भी उन्होंने ही दिया था, मां बहन की इज्जत करने की तालिम भी उन्होंने दिया था। कैप्टन भी मास्टर संतराम का शिष्य रहा है इसलिए उनकी बहन को ढंूढने में वो मदद करता है। मास्टर के दुख दर्द को बांटने की कोशिश भी करता है। इन्ही हालातो का मारा एक किरदार गुमनाम भी है जो हर वक्त नशे में रहता है। उन खौफनाक मंजरो को वो कभी याद भी नही करना चाहता। एक दिन मास्टर की बहन लाडली को लेकर कैप्टन आता है जो कि अर्द विक्षिप्त हो गयी है तथा शारिरीक, मानसिक यातनाओं को झेलकर लौटती है। भाई के मिलने के बाद जब वो होश में आती है तो उसके भाई से आंख मिलाने का साहस भी नही कर पाती है और वो उसे देखकर भागती है उसे बचाने मास्टर संतराम भी दौड़ता है और अन्ततः दोनों सिपाहियों की गोलियों का शिकार हो जाते है। तब गुमनाम चीख-चीखकर लोगों को बतलाता है कि देश का बंटवारा करने वाले राजनेता मसीहा नही है बल्कि मसीहा वो है जो यह शरणार्थी जिनके अपनों की लाशो पर चन्द सियाशत दानों ने भारत देश को हिन्दुस्तान और पाकिस्तान को बांटकर अपने-अपने सरहदों की लकीरे खड़ी कर दी है।

सशक्त कथानक से परिपूर्ण नाटक मसीहा की प्रधान भूमिका में नीरज दीक्षित, गौतम राय, अश्वनी मक्खन, अशोक शुक्ला, अनीता वर्मा एवं अनुपम बिसारिया ने अपने भावपूर्ण अभिनय से रंगप्रेमी दर्शको को देर तक बांधे रखा। पार्श्व पक्ष में प्रकाश देवाशीष मिश्र, संगीत अश्विनी श्रीवास्तव, मुख सज्जा अंशिका क्रिऐशन, मंच सज्जा प्रणव त्रिपाठी, आदित्य वर्मा, मृत्युंजय सैनी, शुभम पटेल, विश्वनीत, सेट आशुतोष विश्वकर्मा व शिखर एवं वस्त्र विन्याश रोजी दूबे, रत्ना ओझा ने, प्रस्तुति नियंत्रक अशोक सिन्हा तथा अजय कुमार कक्कड़ का योगदान नाटक को सफल बनाने में महत्वपूर्ण रहा।

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