महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र) विद्यार्थी – (जनसंचार विभाग) विद्यार्थी – (जनसंचार विभाग)
हाल ही में, इंस्टाग्राम और इसकी पैरेंट कंपनी फेसबुक को तब सार्वजनिक रोष का सामना करना पड़ा, जब कुछ रिपोर्टों में बताया गया कि उनके उपयोग का युवाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। फेसबुक के ‘व्हिसल ब्लोअर’ फ्रांसेस हौगेन (थ्तंदबमे भ्ंनहमद) ने भी यह खुलासा किया कि बड़ी सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य की तुलना में लाभ को उच्च प्राथमिकता दी जाती है। इसने युवाओं पर ऐसे सोशल मीडिया ऐप्स और वेबसाइटों के प्रभाव को उजागर किया है।
सोशल मीडिया के सकारात्मक प्रभाव
फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया मंच किशोरों और युवा वयस्कों को अपनेपन और स्वीकृति की एक भावना प्रदान करते हैं। यह बात एलजीबीटीक्यू जैसे समूहों के लिये विशेष रूप से सत्य है, जो अलग-थलग या हाशिये पर मौजूद हैं।
कोरोना महामारी के दौरान इसका चौतरफा प्रभाव स्पष्ट तौर पर नज़र आया जब इसने ‘आइसोलेशन’ में रह रहे लोगों और प्रियजनों को आपस में जोड़े रखा। सोशल नेटवर्क ’सहकर्मी प्रेरणा’ का सृजन कर सकते हैं और युवाओं को नई एवं स्वस्थ आदतें विकसित करने के लिये प्रेरित कर सकते हैं। किशोर ऑनलाइन माध्यम से अपने लिये सकारात्मक रोल मॉडल भी ढूँढ सकते हैं।
पहचान का निर्माण किशोरावस्था ऐसा समय होता है जब युवा अपनी पहचान को संपुष्ट करने और समाज में अपना स्थान पाने का प्रयास कर रहे होते हैं। सोशल मीडिया किशोरों को अपनी विशिष्ट पहचान विकास हेतु एक मंच प्रदान करता है।
एक अध्ययन से पता चला है कि जो युवा सोशल मीडिया पर अपनी राय व्यक्त करते हैं, वे ‘बेहतर प्रगति’ (ॅमसस-ठमपदह) का अनुभव करते हैं।
अनुसंधान मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और शोधकर्त्ता सोशल मीडिया का उपयोग प्रायः डेटा एकत्र करने के लिये करते हैं, जो उनके अनुसंधान में योगदान करता है। इसके अलावा, थेरेपिस्ट एवं अन्य पेशेवर लोग ऑनलाइन समुदायों के अंदर परस्पर नेटवर्क स्थापित कर सकते हैं, जिससे उनके ज्ञान और पहुँच का विस्तार हो सकता है।
सोशल मीडिया ने किशोरों को एक-दूसरे के पक्ष में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने का अवसर दिया है। सशक्त भावों, विचारों या ऊर्जा की अभिव्यक्ति और सदुपयोग से यह बेहद सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न कर सकता है।
सोशल मीडिया का नकारात्मक प्रभाव
मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँरू कई अध्ययनों में सोशल मीडिया के उपयोग और अवसाद के बीच घनिष्ठ संबंध पाया गया है। एक अध्ययन के अनुसार, मध्यम से गंभीर अवसाद लक्षण वाले युवाओं में सोशल मीडिया का उपयोग करने की संभावना लगभग दोगुनी थी। सोशल मीडिया पर किशोर अपना अधिकांश समय अपने साथियों के जीवन और तस्वीरों को देखने में बिताते हैं। यह एक निरंतर तुलनात्मकता की ओर ले जाता है, जो आत्म-सम्मान और ‘बॉडी इमेज’ को नुकसान पहुँचा सकता है और किशोरों में अवसाद एवं चिंता की वृद्धि कर सकता है।
शारीरिक स्वास्थ्य समस्याएँ सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग के परिणामस्वरूप स्वास्थ्यप्रद, वास्तविक दुनिया की गतिविधियों पर कम समय व्यय किया जाता है। सोशल मीडिया फीड्स को स्क्रॉल करते रहने की आदतकृजिसे ‘वैम्पिंग’ (टंउचपदह) कहा जाता है, के कारण नींद की कमी की समस्या उत्पन्न होती है।
सामाजिक संबंध किशोरावस्था सामाजिक कौशल विकसित करने का एक महत्त्वपूर्ण समय होता है। लेकिन, चूँकि किशोर अपने दोस्तों के साथ आमने-सामने कम समय बिताते हैं, इसलिये उनके पास इस कौशल के अभ्यास के कम अवसर होते हैं।
‘टेक एडिक्शन’रू वैज्ञानिकों ने पाया है कि किशोरों द्वारा सोशल मीडिया का अति प्रयोग उसी प्रकार के उत्तेजना पैटर्न का सृजन करता है जैसा अन्य एडिक्शन व्यवहारों से उत्पन्न होता है।
ऑनलाइन बाल यौन उत्पीड़न और शोषणरू संयुक्त राज्य अमेरिका में किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि सर्वेक्षण में शामिल सभी अमेरिकी बच्चों में से लगभग आधे ने संकेत दिया कि उन्हें ऑनलाइन रहते हुए असहज महसूस कराया गया, उन्हें धमकाया गया या उनसे यौन प्रकृति का संवाद किया गया। एक अन्य अध्ययन में, यह पाया गया कि ऑनलाइन यौन शोषण के शिकार लोगों में से 50 प्रतिशत से अधिक 12 से 15 वर्ष की आयु के बीच के थे।
आगे की राह
युवाओं पर डिजिटल तकनीक के प्रभाव का मूल्यांकन महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि ये प्रभाव उनके वयस्क व्यवहार और भविष्य के समाजों के व्यवहार को आकार प्रदान करेंगे। यह जानना दिलचस्प होगा कि बिल गेट्स और स्टीव जॉब्स जैसे तकनीकी क्षेत्र के दिग्गजों ने अपने बच्चों की प्रौद्योगिकी तक पहुँच को गंभीरता से नियंत्रित रखा था। हमने सोशल मीडिया के नकारात्मक और सकारात्मक दोनों पहलू को जाना, लेकिन इससे बचने का उपाय क्या हो सकता है,क्या कभी हमने सोचा है,एक उपाय यह हों सकता है कि सोशल मीडिया मंचों को कुछ ऐसी सामग्री की अनुशंसा करने या उसका प्रसार करने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिये जिसमें यौन, हिंसक या अन्य वयस्क सामग्री (जुआ या अन्य खतरनाक, अपमानजनक, शोषणकारी, या पूरी तरह से व्यावसायिक सामग्री सहित) शामिल हैं। दूसरा कंटेंट, डेटा स्थानीयकरण, थर्ड पार्टी डिजिटल ऑडिट, सशक्त डेटा संरक्षण कानून आदि के लिये इन मंचों के अधिक उत्तरदायित्व हेतु सरकारी विनियमन भी आवश्यक है। ऑटो-प्ले’ सेशन, पुश अलर्ट जैसे कुछ फीचर्स पर प्रतिबंध लगाना और इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण ऐसे उत्पादों का सृजन करना जो युवाओं को लक्षित न करें। कुछ ऐसे पहलू को अपना करके हम सोशल मीडिया के प्रभाव से बच सकते हैं ।
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