टीटू ठाकुर मुम्बई।
अंधा बांटे रेवड़ी अपने आपनो को दे आईसीआईसीआई बैंक वाली कहावत साबित हो रही है जिसकी वजह से भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंक पर पर ₹12.19 करोड़ (केवल बारह करोड़ उन्नीस लाख रुपये) का मौद्रिक जुर्माना लगाया है। वजह ये है कि बैंक ने लोन देने में मानकों को बिना पूरा करे बल्कि बैंक के निदेशकों को लोन दिया और इस बात को छिपाया गया जबकि इनके खिलाफ अपराधिक मुकद्दमा पंजिकृत किया जाना था। यें जानकारियां भारतीय रिजर्व बैंक के मुख्य महाप्रबंधक योगेश दयाल ने जारी एक बयान में दी।
महाप्रबंधक ने कहा कि बैंक के पर्यवेक्षी मूल्यांकन (आईएसई 2020 और आईएसई 2021) के लिए वैधानिक निरीक्षण आरबीआई द्वारा 31 मार्च, 2020 और 31 मार्च, 2021 को इसकी वित्तीय स्थिति के संदर्भ में आयोजित किए गए थे। संबंधित जोखिम मूल्यांकन रिपोर्ट / निरीक्षण रिपोर्ट की जांच आईएसई 2020 और आईएसई 2021 और उस संबंध में सभी संबंधित पत्राचार से, अन्य बातों के साथ, पता चला कि बैंक ने उन कंपनियों को ऋण स्वीकृत/प्रतिबद्ध किया था जिनमें उसके दो निदेशक भी बैंक में निदेशक थे साथ ही विपणन गैर-वित्तीय उत्पाद की बिक्री, और निर्धारित समयसीमा के भीतर आरबीआई को धोखाधड़ी की रिपोर्ट करने में विफल रहा।
जिसकी वजह से आरबीआई ने बैंक को एक नोटिस जारी किया गया जिसमें उसे कारण बताने की सलाह दी गई कि बीआर अधिनियम के प्रावधानों और आरबीआई द्वारा जारी निर्देशों का पालन करने में विफलता के लिए उस पर जुर्माना क्यों नहीं लगाया जाना चाहिए, जैसा कि उसमें कहा गया है।
योगेश दयाल ने बताया कि नोटिस पर बैंक के जवाब, व्यक्तिगत सुनवाई के दौरान किए गए मौखिक प्रस्तुतीकरण और उसके द्वारा किए गए अतिरिक्त प्रस्तुतीकरण पर विचार करने के बाद, आरबीआई इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि बीआर अधिनियम और आरबीआई निर्देशों के प्रावधानों का अनुपालन न करने का आरोप प्रमाणित और उचित है इस लिए बैंक पर आर्थिक दंड लगाना जरुरी है।
उन्होंने बतया कि यह कार्रवाई विनियामक अनुपालन में कमियों पर आधारित है और इसका उद्देश्य बैंक द्वारा अपने ग्राहकों के साथ किए गए किसी भी लेनदेन या समझौते की वैधता को प्रभावित करना नहीं है।