लखनऊ के फ़ैज़ाबाद रोड पर स्थित होटल डायमंड में नवआरम्भ फाउंडेशन द्वारा एक कवि सम्मेलन व मुशायरे का आयोजन किया गया जो की दुबई में रहने वाले भारतीय मूल के ख्यातिलब्ध समाजसेवी व भारतीयता के झंडाबरदार सैयद सलाहुद्दीन के सम्मान में समर्पित रहा।
नवआरम्भ फाउंडेशन की संस्थापिका वंदना वर्मा ने बताया कि जो भी भारतीय विदेशों में अपने देश के संस्कार जीता है, भारतीयता को बनाये रखता है वो सम्मान का पात्र है उससे पीढ़ियों को सीख लेनी चाहिए की आधुनिकता की अंधी दौड़ में भी परंपराओं को कैसे जीवित रखा जा सकता है।
आदरणीय सैयद सलाहुद्दीन यूएई दुबई में रहते हुए भारतीय संस्कारों और साहित्य को संरक्षण देने का काम तो कर ही रहे हैं साथ ही अपनी राष्ट्रीयता का परचम लहरा कर दुनिया में एक प्रतिमान स्थापित किया है।
सैयद सलाहुद्दीन लगभग तीन दशकों से प्रतिवर्ष भारतीय राष्ट्रीयता पर्व गणतंत्र दिवस पर दुबई में अंतर्राष्ट्रीय कवि सम्मेलन व मुशायरे का आयोजन करते हैं जिसमें भारत से कवियों / शायरों को महान मंच तो देते ही हैं साथ ही प्रवासियों के भावनाओं को प्रस्फुटित होने का एक अवसर भी प्रदान करते हैं। आज हम इन्हें सम्मानित कर के गौरवान्वित हुए हैं।
कार्यक्रम के दौरान कवियों के काव्यपाठ का अंश –
खून का घूंट कभी ज़हर पिया है मैंने
ज़िंदगी तुझको बहरहाल जिया है मैंने
मुईद रहबर लखनवी
ह्रदय की वेदनाओं को सदा सबसे छुपाता हूं।
नयन रहते सदा बोझिल मगर मैं मुस्कुराता हूं।
मिली जो चोट जीवन में उसी को ढाल शब्दों में,
हमेशा गीत अधरों पर मैं लाकर गुनगुनाता हूं। आशुतोष आशु
न तो ये हिन्दुवानी है न ही ये मुसलमानी है
मगर ईमान सच कहता हूँ मेरा ख़ानदानी है
बराबर हैं मेरी नज़रों में अश्फ़ाक और बिस्मिल
हर इक क़तरा लहू का मेरे बस हिन्दोस्तानी है
धर्मराज कवि शायर
ना कहकहे ही मिल सके न चीख मिल सकी
ठोकर बिना ना ज़िन्दगी में सीख मिल सकी
कांसा लिये मैं हाथ में फिरता रहा मगर
चाहत मिली न चाहतों की भीख मिल सकी
डॉ प्रशान्त सिंह
ये छत पे मिरी चांद का साया है के तुम हो
सपनों में कोई मेनका रम्भा है के तुम हो
क्या ख़ूब हवाओं ने बनाया है तमाशा
दरवाज़ा यही सोच के खोला है के तुम हो
सत्यम रौशन
शयन रत मन जगाना आ गया है।
विजय का पथ बनाना आ गया है।
हवा के रूख़ की अब चिंता नही है,
मुझे दीपक जलाना आ गया है।।
शशि श्रेया
यूँ कमसिनी में संभाली है शायरी मैंने
कि जैसे जी है जवानी की ज़िंदगी मैंने
ग़ज़ल की फिक्र को ख़ून ए जिगर दिया अपना
कभी रखी नहीं बुनियाद खोखली मैंने
दर्द फैज़ खान
कोई चेहरा बदल नहीं सकता
घर में इक आइना पुराना है
मलिकजादा जावेद
शहर के जाने-माने गायक मिथलेश लखनवी ने अपने ग़ज़लों और गीतों से समा बांध दिया शुरुआत उन्होंने पद्मश्री अनवर जलालपुरी द्वारा रचित उर्दू शायरी में गीता को गाकर किया उसके बाद राहत इंदौरी की ग़ज़ल ष्लोग हर मोड़ पर रुक-रुक कर संभलते क्यों हैं इतना डरते हैं तो घर से निकलते क्यों हैं,. कार्यक्रम की संयोजिका और मशहूर शायरा वंदना वर्मा अनम की ग़ज़ल पलकें नाजुक़ हैं बहुत ख़्वाब में आया न करो ष्को बेहतरीन अंदाज में प्रस्तुत किया। आदि की उपस्थिति रही। कार्यक्रम का सफल संचालन आसिम काकोरवी ने तथा धन्यवाद ज्ञापन.एस रिज़वान रप ने किया।
प्रोग्राम देर रात तक चलता रहा लोगों ने खूब लुफ़्त उठाया।