सीएसआईआर-भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-आईआईटीआर) मेंद्वितीय बौद्धिक संपदा अधिकार जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम सीएसआईआर द्वारा संचालित राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा महोत्सव के एक भाग के रूप में आयोजित किया गया।
इस कार्यक्रम में दयालबाग इंस्टीट्यूट, आगरा; इसाबेला थोबर्न(आईटी) कॉलेज, लखनऊ; नालन्दा विश्वविद्यालय, बिहार; सीएसआईआर-एनबीआरआई, सीएसआईआर-आईआईटीआर, सीएसआईआर-सीमैप(सीआईएमएपी)और सीएसआईआर-एनआईओ, गोवा सहित प्रतिष्ठित शैक्षणिक एवं अनुसंधान एवं विकास संस्थानों के प्रतिभागियों ने भाग लिया।
श्रृंखला का यह द्वितीय कार्यक्रमसंस्थान के सीएसआईआर एकीकृत कौशल पहल के एक भाग के रूप में आयोजित किया गया था। सीएसआईआर-आईआईटीआर के मुख्य वैज्ञानिक एवं बौद्धिक संपदा समन्वयक डॉ. कैलाश चंद्र खुल्बे द्वारा इसे क्षेत्र में लागू करने तक की नवाचार यात्रा के पहलुओं को कवर किया गया था। डॉ. खुल्बे ने इस अवसर पर संबोधित करते हुए स्पष्ट किया कि श्ज्ञानश् आज नए विश्व के क्षेत्र की वास्तविक मुद्रा कैसे बन गया है।उन्होंने इसके कानूनी संरक्षण से संबंधित विविध पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। सीएसआईआर द्वारा जीती गई श्हल्दीघाटी की दूसरी लड़ाईश् जैसे अनेक केस अध्ययनों को सुनकर प्रतिभागी रोमांचित हो उठे। डॉ. खुल्बे ने बौद्धिक संपदा टूल्स के उचित उपयोग के माध्यम से नवाचार की श्सुरक्षाश् एवं इसके प्रभावी मुद्रीकरण के महत्व को दोहराया। उन्होंने विभिन्न प्रकार के बौद्धिक संपदा अधिकारों जैसे पेटेंट, कॉपीराइट, ट्रेडमार्क आदि एवं वैज्ञानिक संगठनों में उनकी उपयोगिता के बारे में सविस्तार अवगत कराया।
डॉ. भास्कर नारायण,निदेशक,सीएसआईआर-आईआईटीआर ने कार्यक्रम के दौरान श्औद्योगिक रूप से प्रासंगिकश् शोध कार्य के महत्व के बारे में प्रकाश डाला। डॉ. नारायण ने न केवल पेटेंटदाखिल करने बल्कि उन्हें व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य प्रौद्योगिकियों, उत्पादों एवं प्रक्रियाओं में तैनात करने एवं ट्रान्सलेट करने की आवश्यकता पर बल दिया।