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गुरुदेव की भाँति विवेकानन्द भी एक पहेली है, जिसे आज तक बूझा नहीं जा सका है-स्वामी मुक्तिनाथानन्द

*स्वामी विवेकानन्दजी की 161वीं जयन्ती समारोह-रामकृष्ण मठ, लखनऊ में नौवां दिन सम्पन्न*

स्वामी विवेकानन्द की 161वीं जन्मतिथि समारोह पर आयोजित 10 दिवसीय कार्यक्रम बडे़ ही हर्षोल्लास के साथ रामकृष्ण मठ में मनाई जा रही है तथा समस्त कार्यक्रम हमारे यूट्यूब चैनेल : ‘रामकृष्ण मठ लखनऊ’ के माध्यम से सीधा प्रसारित किया गया।

कार्यक्रम की शुरूआत प्रातः 5ः00 बजे श्री श्री ठाकुर जी की मंगल आरती से हुई। तत्पश्चात प्रातः 6ः50 बजे वैदिक मंन्त्रोच्चारण रामकृष्ण मठ के स्वामी इष्टकृपानन्द द्वारा किया गया तथा प्रातः 7ः15 बजे स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी महाराज द्वारा (ऑनलाइन धार्मिक प्रवचन) सत प्रसंग हुआ।

 

संध्यारति के उपरांत रामकृष्ण मठ के प्रेक्षागृह में लीलागीति का आयोजन किया गया। जहाँ पर स्थानीय कलाकार गण द्वारा अद्भुत शैली का प्रदर्शन किया गया।

 

रामकृष्ण सेवा समिति, लखनऊ के सात कलाकार गणों के एक समूह ने यह लीला गीति प्रस्तुत किया, जिसका विषय थाः ’करूणामय स्वामी विवेकानन्द’। लीला गीति के लिपि प्रस्तुत कारक सुखदराम पांडे जी ने उल्लेख किया कि रामकृष्ण मिशन के एक महान संन्यासी स्वामी प्रेमेशानन्दजी ने स्वामी विवेकानन्द को ‘परम कारुणिक’ कहा है। जब उनसे पूछा गया कि निर्भय, वीर्यवान, युगनायक, साहसी और योद्धा संन्यासी के रूप में तो हमने स्वामी जी की बहुत महिमा सुनी है, पर कारुणिक के रुप में उन्हें न किसी ने चित्रित किया है और न तो हमने इस सम्बन्ध में कुछ विशेष सुना है। इस पर स्वामी प्रेमेशानन्दजी ने कुछ गम्भीर होते हुए कहा है – ‘‘ऐसा कौन है, इस धरती पर जो स्वामी विवेकानन्द के हृदय को समझ सकेगा ?“ स्वामीजी ने स्वयं कहा था – ‘‘एक और विवेकानन्द होता तभी वह समझ पाता कि इस विवेकानन्द ने क्या किया है।’’

 

अपने गुरुदेव की भाँति स्वामी विवेकानन्द भी एक पहेली है, जिसे आज तक बूझा नहीं जा सका है। वह चुनौती हैं हमारे लिए, आने वाले सभी युगों के लिए और नित्य बदलती असंख्य पीढ़ियों के लिए, जो विवेकानन्द के रूप में सृष्टि की महानतम जीवन – गाथा में अवगाहन करके स्वयं में न केवल धन्यता का अनुभव करेगी, वरन् प्रेरणा के नव पल्लवित उत्सों और उच्छ्वासों के स्पर्श से स्निग्ध होकर नूतन जीवन का वरण करेंगी।

 

इस लिपि का पाठ रामकृष्ण सेवा समिति लखनऊ के श्री उदयादित्य बनर्जी ने किया। उनके उदात्त स्वर सबको अनुप्राणित कर दिया। लीला गीति के मुख्य परिचालक श्री अनिमेष मुखर्जी ने कुल 10 भजन का परिचालन किया एवं उनके नेतृत्व में अन्य गायकगण :- श्री जय चक्रवर्ती एवं प्रवीर भट्टाचार्य ने विभिन्न भजन प्रस्तुत किया। कभी एकक रूप से, कभी सामूहिक रूप से। तबले में संगत किया श्री मुकेश प्रसाद एवं वायलिन में सुसान्तो मुखर्जी मंजीरा मे श्री अजीत त्रिवेदी।

 

अनुष्ठान के उपरांत रामकृष्ण मठ के अध्यक्ष ’स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी’ ने प्रत्येक कलाकारगण को स्वामी विवेकानन्द की छवि, अगरबत्ती, आक्सीजन पौधा एवं अन्य स्मृति चिन्ह प्रदान करके कलाकारगण को सम्मानित किया।

 

लीलागीति की अद्भुत प्रस्तुति सब दर्शकगणों को मोहित कर दिया अंत में उपस्थित दर्शकवृन्द के बीच प्रसाद वितरण के माध्यम से कार्यक्रम का समापन हुआ।

 

 

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