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अहमद इब्राहीम अल्वी की नई किताब ‘बेगम शहनाज़ सिदरत: कामयाबियाँ, योजनाएँ और कोशिशें’ का विमोचन, प्रमुख हस्तियों ने बेगम की सेवाओं की सराहना की

बेगम शहनाज़ सिदरत ने मजबूर और परेशान महिलाओं को वाणी की ताक़त दी: मासूम मुरादाबादी

बेगम शहनाज़ सिदरत की सेवाएँ किसी कारनामे से कम नहीं: अहमद इब्राहीम अल्वी

लखनऊ, 13 मई।

प्रसिद्ध पत्रकार और साहित्यकार अहमद इब्राहीम अल्वी की नई किताब ‘बेगम शहनाज़ सिदरत: कामयाबियाँ, योजनाएँ और कोशिशें’ का विमोचन मदरसा हयातुल उलूम, फिरंगी महल, चौक में संपन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध पत्रकार मासूम मुरादाबादी ने की, संचालन रिज़वान फारूक़ी ने किया।

विशेष अतिथि के रूप में सुलतान शाकिर हाशमी, संजय मिश्रा शौक़, जुबैर अंसारी, प्रो. परवेज़ मलिकज़ादा, सुधा मिश्रा, रफ़अत शीदा सिद्दीक़ी हैदर अलवी प्रिया सिंह,राहैल ब्राज़ील, पामेला मैक्सिको समेत कई गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे।

महत्वपूर्ण बात यह रही कि यह किताब एक दिन में लिखी गई, एक सप्ताह में छपकर तैयार हुई और चंद घंटों में इसका विमोचन कर दिया गया, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है।

 

मासूम मुरादाबादी ने कहा कि बेगम शहनाज़ सद्रत और मेरी परवरिश मुरादाबाद के एक शैक्षिक माहौल में हुई। मौलाना इफ्तिखार फ़रीदी, जिन्हें बेगम शहनाज़ ‘बाबा’ कहा करती थीं, एक विद्वान, साहित्यकार और स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्हीं के सान्निध्य में बेगम की परवरिश हुई।

शहनाज़ सिदरत को हयातुल्लाह अंसारी जैसे प्रसिद्ध पत्रकार और बेगम सुल्ताना हयात का साथ मिला, जिससे शहनाज़ फ़ातिमा हाशमी से वे बेगम शहनाज़ सिदरत बनीं।

उन्होंने कहा कि महिलाओं की शिक्षा और प्रोढ शिक्षा के लिए बेगम का योगदान अविस्मरणीय है। उन्होंने समाज की मजबूर और परेशान महिलाओं को बोलने की ताक़त दी ताकि वे अपनी लड़ाई खुद लड़ सकें और समाज में अपनी जगह बना सकें।

मासूम मुरादाबादी ने कहा कि बेगम सुल्ताना हयात के अंदर जो क़ौमी और समाजी सेवा का जज़्बा था, वही जज़्बा बेगम शहनाज़ में उतर आया और उन्होंने उनकी मुहिम को आगे बढ़ाया।

उन्होंने कहा कि किताब एक दिन में लिखना काबिले तारीफ़ है, लेकिन इसमें बेगम की सेवाओं को और विस्तार से शामिल करने की गुंजाइश है। उन्होंने यह भी कहा कि वे स्वयं एक लेख लिखेंगे, क्योंकि शहनाज़ सिदरत की सेवाएँ उनके ऊपर कर्ज़ हैं।

 

अहमद इब्राहीम अल्वी ने कहा कि बेगम शहनाज़ की सेवाएं सबके सामने हैं। उन्होंने महिलाओं को जगाने और उन्हें शिक्षित करने का ऐतिहासिक कार्य किया, जो समाज की तरक्की का जरिया बना।

उन्होंने मौजूदा शिक्षा प्रणाली पर प्रकाश डालते हुए उसे कमजोर बताया।

उन्होंने कहा कि पहले संसाधनों की भारी कमी थी, फिर भी बेहतर और योग्य लोग निकलते थे, क्योंकि शिक्षक ईमानदारी से शिक्षा को अपनी जिम्मेदारी मानते थे।

अब छात्रों को सभी संसाधन मिलने के बावजूद उनमें न तो अनुशासन है और न ही गहरा ज्ञान। विश्वविद्यालयों में शिक्षण के दिन बहुत कम हो गए हैं, अधिकतर समय प्रवेश और परीक्षा में ही चला जाता है।

हमें शिक्षा प्रणाली पर ध्यान देने की ज़रूरत है, क्योंकि शिक्षा का उद्देश्य एक अच्छा इंसान बनाना है, न कि सिर्फ इंजीनियर या डॉक्टर।

 

संजय मिश्रा शौक़ ने कहा कि तीन प्रकार के लोग होते हैं:

 

1. जो समय के साथ बहते हैं,

 

 

2. जो अपने सिद्धांतों पर अडिग रहते हैं,

 

 

3. जो समय की धारा को अपने अनुसार मोड़ देते हैं।

बेगम शहनाज़ सद्रत तीसरे प्रकार की थीं। उन्होंने 40 वर्षों तक लगातार काम कर अपनी विशिष्ट पहचान बनाई।

उन्होंने ऐसी बच्चियों को शिक्षित किया, जिनके घरों में शिक्षा का कोई वातावरण नहीं था।

‘बज़्म-ए-ख़वातीन’ के माध्यम से उन्होंने महिलाओं को आत्मबल और आत्मनिर्भरता दी।

उन्होंने इस्लाम की पहली आयत “इक़रा” (पढ़ो) को अपनी जिंदगी का मक़सद बनाया और उसपर पूरी तरह अमल किया।

 

 

 

इसके अलावा परवेज़ मलिकज़ादा, जुबैर अंसारी, अनवर जहाँ व अन्य ने भी संबोधित किया।

प्रसिद्ध शायर रफ़अत शीदा सिद्दीक़ी ने बेगम को समर्पित एक नज़्म पेश की।

इस अवसर पर सुधा मिश्रा, हारिस अल्वी, दैनिक जागरण के वरिष्ठ पत्रकार राजू मिश्रा, प्रिया सिंह, राहिला ब्राज़ील, पामेला मेक्सिको समेत अन्य प्रमुख हस्तियाँ उपस्थित थीं।

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