भारतीय संविधान के अनुच्छेद 338 (8) के अनुसार राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एनसीएससी) और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 338 ए (8) के अनुसार राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) की न्यायिक शक्तियां निम्नानुसार हैं
“आयोग को उप-खंड (ए) में निर्दिष्ट किसी मामले की जांच करते समय या खंड (5) के उप-खंड (बी) में निर्दिष्ट किसी शिकायत की जांच करते समय किसी मुकदमे की सुनवाई करने वाले सिविल न्यायालय की सभी शक्तियां प्राप्त होंगी और विशेष रूप से निम्नलिखित मामलों के संबंध में, अर्थात-
(प) भारत के किसी भी भाग से किसी भी व्यक्ति को तलब और उसे उपस्थित कराना तथा शपथ पर उसकी जांच करना
(पप) किसी भी दस्तावेज की खोज और तैयार करने की आवश्यकता
(पपप) हलफनामों पर साक्ष्य प्राप्त करना
(पअ) किसी भी न्यायालय या कार्यालय से किसी भी सार्वजनिक अभिलेख या उसकी प्रतिलिपि की मांग करना
(अ) गवाहों और दस्तावेजों की जांच के लिए आयोग का गठन करना
(अप) कोई अन्य मामला जिसे राष्ट्रपति नियम द्वारा निर्धारित कर सकते हैं।
जहां तक राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (एनसीएम) का संबंध है, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 की धारा 9(4) के अनुसार-
“आयोग, उप-धारा (1) के उप-खंड (ए), (बी) और (डी) में उल्लिखित किसी भी कार्य को निष्पादित करते समय, किसी मुकदमे की सुनवाई करने वाले सिविल न्यायालय की सभी शक्तियां रखेगा और विशेष रूप से, निम्नलिखित मामलों के संबंध में, अर्थात-
(प) भारत के किसी भी भाग से किसी भी व्यक्ति को तलब और उसे उपस्थित कराना तथा शपथ पर उसकी जांच करना
(पप) किसी दस्तावेज की खोज और उसे तैयार करने की आवश्यकता
(पपप) हलफनामों पर साक्ष्य प्राप्त करना
(पअ) किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी सार्वजनिक रिकॉर्ड या उसकी प्रति की मांग करना
(अ) गवाहों और दस्तावेजों की जांच के लिए आयोग का गठन करना और
(अप) कोई अन्य मामला जो निर्धारित किया जा सकता है”
एनसीएम की न्यायिक शक्तियां एनसीएससी और एनसीएसटी की शक्तियों के समान हैं, सिवाय बिंदु (अप) के जिसमें एनसीएससी और एनसीएसटी में प्रावधान है कि “कोई अन्य मामला जिसे राष्ट्रपति नियम द्वारा निर्धारित कर सकते हैं”। जबकि एनसीएम के लिए यह “कोई अन्य मामला है जिसे निर्धारित किया जा सकता है”।
यह जानकारी अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने लोकसभा में एक लिखित उत्तर में दी।